शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा,
काली घटा के अंदर,
जिमि दामिनी उजाला,
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा ॥
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा,
काली घटा के अंदर,
जिमि दामिनी उजाला,
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा ॥
गल मुंड माल साजे,
शशि भाल में विराजे,
डमरू निनाद बाजे,
कर में त्रिशूल धारा,
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा ॥ 1
मृग चर्म बसनधारी
बृषराज पर सवारी
निज भक्त दू:खहारी,
कैलाश में बिहारा,
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा ॥2
दृग तीनि तेजरासी,
कटिबन्ध नाग फासी,
गिरजा हैं संग दासी,
सब विश्व के अधारा,
शंकर तेरी जटा से,
बहती है गंग धारा ॥3
शिव नाम जो उचारे ,
सब पाप दोष टारे,
ब्रह्मानंद ना बिसारे,
भव सिन्धु पार तारा,
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा ॥4
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा,
काली घटा के अंदर,
जिमि दामिनी उजाला,
शंकर तेरी जटा में,
बहती है गंग धारा ॥